Friday 16 January 2015

जीवन में संघर्ष से आती है परिपक्वता

          पारिवारिक जीवन में जब अचानक संघर्ष आता है तो तैयारी न होने पर लोग टूट जाते हैं या बिखर जाते हैं। टूट गए तो फिर जुड़ जाएंगे, लेकिन बिखर गए तो व्यक्तित्व के टुकड़े समेटना मुश्किल होगा। आज के बच्चों को तो मालूम ही नहीं है कि संघर्ष होता क्या है। मां-बाप प्रतिपल बच्चों को सुख देने के लिए बेचैन रहते हैं। इनके जीवन का 75 प्रतिशत संघर्ष तो मां-बाप ही पूरा कर देते हैं। ऐसे लोग होते हैं, जो पढ़ाई का खर्च खुद उठाते हैं। आज के बच्चे इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। इन्हें लगता है कि फीस मां-बाप को ही भरनी है। पेरेंट्स बच्चों को अच्छे से पढ़ा देते हैं, अच्छी-सी नौकरी लगवा देते हैं। बच्चों के जीवन में संघर्ष बचा ही नहीं। कुछ संघर्ष संतानों के लिए भी छोड़ना चाहिए।
           बच्चो को एहसास कराना चाहिए कि जो सुविधाएं इन्हें मिल रही हैं, ये इनका अधिकार नहीं; बल्कि माता-पिता का उपकार है। परिंदा भी अपने छोटे बच्चों को पेड़ से धक्का दे देता है। इसके बाद वो बच्चा पेड़ से गिरता नहीं, उड़ जाता है और तब उस बच्चे को पता चलता है कि अगर धक्का नहीं दिया होता तो मैं आसमान में नहीं आया होता। इसी प्रकार जिंदगी के दरिया में इन बच्चों को हाथ-पैर चलाने देना होगा। जब संघर्ष आता है तो लोग दुर्भाग्य मानने लगते हैं। संघर्ष और दुर्भाग्य में फर्क है। दुर्भाग्य परेशान करता है, संघर्ष तराशता है। पांच चीजें बच्चों को अवश्य सिखाएं- परिश्रम, ईमानदारी, सहनशीलता, सहयोग की वृत्ति और परिणाम के प्रति बेफिक्र होना। इससे बच्चे परिपक्व होंगे क्योकि सोना आग में तप कर और निखरता है जल कर ख़त्म नहीं हो जाता। संघर्ष का दूसरा नाम ही जीवन है। अपने जीवन में घटित घटनाओं से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है जिससे सही मायने में जीवन में परिपक्वता आती है!

बच्चों में जिम्मेदारी का अहसास जगाएं

         आज के समय में घर के सदस्यों से, जीवनसाथी से, बच्चों से कोई काम कराना बड़ा मुश्किल हो गया है। अपने व्यवसाय या घर में जब भी किसी से काम लें, उसमें चार बातों का ध्यान रखें। एक, काम का बंटवारा ठीक से करें। यह मालूम होना चाहिए कि कौन-सा व्यक्ति क्या काम कर सकता है। बंटवारा गलत हुआ तो काम भी बिगड़ेगा। दो, जिसे काम सौंपा गया है, उस पर भरोसा रखें। तीन, स्त्री-पुरुष का भेद नहीं करें। कई लोग सोचते हैं कि महिलाएं यह काम नहीं कर पाएंगी। बस, यहीं से झंझट शुरू हो जाती है घरों में। औरतें भी कई बार यह मान लेती हैं कि यह काम आदमी नहीं कर सकते। ऐसे में काम हो या न हो, लेकिन स्त्री-पुरुष का झगड़ा जरूर शुरू हो जाता है।
          इन चार, दायित्व बोध का भाव जगाना चाहिए, खासतौर पर बच्चों में। इसके अभाव में बच्चे जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं होते, लेकिन सुविधाएं चाहते हैं। घर के छोटे-छोटे काम जो बच्चों के होते हैं वे नौकर या घर के बड़े सदस्य करते हैं। एक प्रयोग करें। बच्चों को कुछ काम सौंप दें और दूर से खड़े होकर देखें, लेकिन हस्तक्षेप नहीं करें। घर में पति-पत्नी, बाप-बेटे, भाई-बहन सबके काम करने के तरीके अलग हो सकते हैं। मुद्‌दा तरीके का नहीं; काम सही करने का है, इसलिए बच्चे जिस तरीके से भी काम करें उन्हें पूरा करने दें और धैर्य रखें। अगर काम में कोई गड़बड़ हो जाए तो उसे सही करने का समय देना चाहिए। ऐसे में अगर आपको क्रोध आ रहा है, तो शांत रहें। परिवार में शांति आएगी तो खुशी और आनंद बढ़ जाएगा क्योकि परिवार की खुशी उनके सदस्यों से होती है और उनमे काम करने की आजादी उन्हें बहुत कुछ सिखाती है।

जनकल्याण की सोचें


   विकास के नाम पर उद्दोग नहीं लग रहे, व्यापार-कारोबार पर नक्सलियों और रंगदारों की बुरी नजर है, दो जून की रोटी के लिए बड़ी आबादी दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर है, कानून-व्यवस्था की हालत इस कदर बदतर है कि अदालतें सुरक्षित नहीं है, किसानों को यूरिया कालाबाजार से खरीदनी पड़ रही है, तैयार धान उनके घर-खलिहान में लगा है, पर कोई खरीदने वाला नहीं। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और दवाएं नदारद तो स्कूलों में शिक्षक और भवन का अभाव है। फिर भी सार्वजनिक मंच से लोकतंत्र को अपने कंधे पर ढोने का दावा करने वाले प्रगति की दुहाई देने से बाज नहीं आ रहे। जिस राज्य की बड़ी आबादी रात को बिना खाए सो जाती हो, वहां किसी शख्सियत के नाम पर लाखों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं। सत्ता में हनक दिखाने को भोज की राजनीति भी तेज हो गई है। पिछले तीन-चार दिनों के दौरान एक राजनीतिक हस्ती के नाम पर कई आयोजन किए गए, लेकिन इन कार्यक्रमों में उस शख्सियत के गुणों का बखान कम हुआ। ये संदेश ज्यादा दिए गए कि विधानसभा चुनाव में लोग क्या करें, किसे सपोर्ट करें और किसका बहिष्कार करें। देखा जाए तो सच्चे-झूठे बखानों से आमजनों को भरमा रहे ये जनार्दन इस बात से अनभिज्ञ हैं कि अब पब्लिक बेवकूफ नहीं रही। विज्ञान युग ने उसे यह सोचने-समझने का मौका दे दिया है कि वादों का दम भरने वाले सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद वास्तव में उसे देंगे क्या? ऐसे कार्यक्रमों को लोग अब फिल्म की तरह लेने लगे हैं, सफल हीरो की तरह कोई सफल नेता मंच पर है और वह कुछ उल्टा-पुल्टा बोलता है तो हंसी और तालियां सुनाई देती हैं, नहीं तो जल्दी ही लोग वहां से खिसक लेते हैं।
    हिन्दू राष्ट्र के नाम पर जातिवाद, धार्मिक कट्टरता और रूढि़वाद से गरीबों को बरगलाने की कोशिश हो रही है। उसी महत्वपूर्ण शख्सियत को याद करने के बहाने कार्यक्रम आयोजित करने वाले दूसरे दल की कथनी पर गौर करें तो उसके बड़े नेता ने देश की उपलब्धियों से समां बांधना शुरू किया। कहा गया कि विकास के लिए जो रोडमैप तैयार किया गया था, उसी पर उनकी सरकार चल रही है। बिहार में सत्ताधारी दल की एका का मकसद पाक नहीं है। दावा किया गया कि इसे जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। आरोप जड़े गए कि योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करना सूबे की वर्तमान सरकार के वश में नहीं है। फिलहाल सार्वजनिक मंचों से दोनों दलों ने अवाम को चौराहे पर ही खड़ा करने में रुचि दिखाई है, जबकि जरूरत रास्ता बताने की है।

Monday 12 January 2015

जम्मू में पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पर फिर की गोलीबारी

जम्मू: पाकिस्तानी रेंजर्स और बीएसएफ के जवानों के बीच जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गोलीबारी हुई।

बीएसएफ के एक अधिकारी ने कहा, 'पाकिस्तानी रेंजर्स ने अंतरराष्ट्रीय सीमा के साथ बनी सीमा चौकियों पर कई छोटे मोर्टार बम दागे और हल्के हथियारों से गोलीबारी की। यह गोलीबारी रविवार को देर रात सांबा सेक्टर की हीरानगर बेल्ट में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर उस समय हुई, जब हमने सीमा के पास संदिग्ध गतिविधियां होते देखकर उन्होंने कहा कि गोलीबारी कुछ समय तक चली।
उन्होंने कहा कि गोलीबारी कुछ समय तक चली। गोलीबारी में कोई भी हताहत नहीं हुआ है।

उन्होंने कहा, 'असैन्य क्षेत्रों में कोई गोलीबारी नहीं हुई।' कल रात 9 बजकर 40 मिनट पर कठुआ जिले की हीरानगर बेल्ट में करोल कृष्णा और लोंदी सीमावर्ती चौकियों पर मोर्टार दागे गए थे।
इससे पहले कठुआ जिले में 6 जनवरी को पाकिस्तानी रेंजर्स ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गोलीबारी की थी और संघर्षविराम का उल्लंघन किया था।

जनवरी में जम्मू-कश्मीर स्थित भारत-पाक सीमा पर पाकिस्तानी गोलीबारी एवं बमबारी में पांच लोग मारे जा चुके हैं। इनमें चार जवान और एक महिला शामिल हैं। गोलीबारी के कारण 10 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं।

Thursday 8 January 2015

खजाना भरने में जुटी सरकार

        वित्त मंत्रालय ने देर शाम जारी विज्ञप्ति के जरिये यह सूचना दी कि ढांचागत परियोजनाओं के लिए फंड जुटाने को पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया जा रहा है। इस राशि का इस्तेमाल खास तौर पर चालू वर्ष और अगले वित्त वर्ष के दौरान 15,000 किलोमीटर सड़क निर्माण के लिए किया जाएगा। यह शुल्क वृद्धि बृहस्पतिवार आधी रात से लागू हो गई है। दो महीने के भीतर पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क में तीन बार बढ़ोतरी से साफ पता चला है कि राजकोषीय घाटे को काबू में रखना सरकार के लिए कितना चुनौतीपूर्ण हो गया है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि पहले नौ महीने में ही इस घाटे की राशि पूरे वित्त वर्ष के लगभग बराबर पहुंच चुकी है। यही वजह है कि एक दिन पहले सरकार ने ऑटोमोबाइल उद्योग और घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री को दी गई उत्पाद शुल्क राहत भी वापस ले ली है।
         बहरहाल, सरकार का यह फैसला आम जनता पर अतिरिक्त बोझ तो नहीं डालेगा, क्योंकि तेल कंपनियों ने इसे पेट्रोल और डीजल की मौजूदा कीमत में ही समायोजित करने का फैसला किया है। इसका दूसरा पहलू यह है कि सस्ते कच्चे तेल की वजह से पेट्रोल-डीजल कीमतों में दो रुपये की संभावित कटौती अब नहीं होगी। उत्पाद शुल्क में वृद्धि से ही तेल कंपनियों ने इस बार होने वाली कीमत कटौती का फायदा ग्राहकों को नहीं दिया है।पिछले दो महीने के भीतर तीसरी बार शुल्क में वृद्धि की गई है। सरकार की तरफ से कहा गया है कि ढांचागत विकास के लिए शुल्क में बढ़ोतरी की गई है, मगर हकीकत यह है कि इस शुल्क वृद्धि से जनता को पेट्रोल-डीजल कीमत में राहत नहीं मिल पाई है।
       पेट्रोल डीजल  के अलावा भारत सरकार ने रेल किराया में वृद्धि की है इसके अलावा पहल योजना के माघ्यम से भी जनता पर अतिरिक्त बोझ डाला है।  नरेंद्र मोदी ने सत्ता सँभालते ही भारतीय अर्थव्यस्था का हवाला देते हुए कठोर निर्णय लेने की घोसणा की है जिससे भारत का खजाना भरा जा सके। ताकि भारत में महगाई को काम किया जा सके । क्योकि सरकार के पास जब तक राजस्व नहीं होगा तब तक वह देश की बिकराल समस्या बानी बेटी महगाई को कम नहीं कर पायेगी ।