विकास के नाम पर उद्दोग नहीं लग रहे, व्यापार-कारोबार पर नक्सलियों और
रंगदारों की बुरी नजर है, दो जून की रोटी के लिए बड़ी आबादी दूसरे राज्यों
में पलायन को मजबूर है, कानून-व्यवस्था की हालत इस कदर बदतर है कि अदालतें
सुरक्षित नहीं है, किसानों को यूरिया कालाबाजार
से खरीदनी पड़ रही है, तैयार धान उनके घर-खलिहान में लगा है, पर कोई खरीदने
वाला नहीं। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और दवाएं नदारद तो स्कूलों में
शिक्षक और भवन का अभाव है। फिर भी सार्वजनिक मंच से लोकतंत्र को अपने कंधे
पर ढोने का दावा करने वाले प्रगति की दुहाई देने से बाज नहीं आ रहे। जिस
राज्य की बड़ी आबादी रात को बिना खाए सो जाती हो, वहां किसी शख्सियत के नाम
पर लाखों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं। सत्ता में हनक दिखाने को भोज की
राजनीति भी तेज हो गई है। पिछले तीन-चार दिनों के दौरान एक राजनीतिक हस्ती
के नाम पर कई आयोजन किए गए, लेकिन इन कार्यक्रमों में उस शख्सियत के गुणों
का बखान कम हुआ। ये संदेश ज्यादा दिए गए कि विधानसभा चुनाव में लोग क्या
करें, किसे सपोर्ट करें और किसका बहिष्कार करें। देखा जाए तो सच्चे-झूठे
बखानों से आमजनों को भरमा रहे ये जनार्दन इस बात से अनभिज्ञ हैं कि अब
पब्लिक बेवकूफ नहीं रही। विज्ञान युग ने उसे यह सोचने-समझने का मौका दे
दिया है कि वादों का दम भरने वाले सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद वास्तव
में उसे देंगे क्या? ऐसे कार्यक्रमों को लोग अब फिल्म की तरह लेने लगे हैं,
सफल हीरो की तरह कोई सफल नेता मंच पर है और वह कुछ उल्टा-पुल्टा बोलता है
तो हंसी और तालियां सुनाई देती हैं, नहीं तो जल्दी ही लोग वहां से खिसक
लेते हैं।
हिन्दू राष्ट्र के नाम पर जातिवाद, धार्मिक कट्टरता और रूढि़वाद से गरीबों को बरगलाने की कोशिश हो रही है। उसी महत्वपूर्ण शख्सियत को याद करने के बहाने कार्यक्रम आयोजित करने वाले दूसरे दल की कथनी पर गौर करें तो उसके बड़े नेता ने देश की उपलब्धियों से समां बांधना शुरू किया। कहा गया कि विकास के लिए जो रोडमैप तैयार किया गया था, उसी पर उनकी सरकार चल रही है। बिहार में सत्ताधारी दल की एका का मकसद पाक नहीं है। दावा किया गया कि इसे जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। आरोप जड़े गए कि योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करना सूबे की वर्तमान सरकार के वश में नहीं है। फिलहाल सार्वजनिक मंचों से दोनों दलों ने अवाम को चौराहे पर ही खड़ा करने में रुचि दिखाई है, जबकि जरूरत रास्ता बताने की है।
हिन्दू राष्ट्र के नाम पर जातिवाद, धार्मिक कट्टरता और रूढि़वाद से गरीबों को बरगलाने की कोशिश हो रही है। उसी महत्वपूर्ण शख्सियत को याद करने के बहाने कार्यक्रम आयोजित करने वाले दूसरे दल की कथनी पर गौर करें तो उसके बड़े नेता ने देश की उपलब्धियों से समां बांधना शुरू किया। कहा गया कि विकास के लिए जो रोडमैप तैयार किया गया था, उसी पर उनकी सरकार चल रही है। बिहार में सत्ताधारी दल की एका का मकसद पाक नहीं है। दावा किया गया कि इसे जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। आरोप जड़े गए कि योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करना सूबे की वर्तमान सरकार के वश में नहीं है। फिलहाल सार्वजनिक मंचों से दोनों दलों ने अवाम को चौराहे पर ही खड़ा करने में रुचि दिखाई है, जबकि जरूरत रास्ता बताने की है।
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