Thursday, 8 January 2015

खजाना भरने में जुटी सरकार

        वित्त मंत्रालय ने देर शाम जारी विज्ञप्ति के जरिये यह सूचना दी कि ढांचागत परियोजनाओं के लिए फंड जुटाने को पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया जा रहा है। इस राशि का इस्तेमाल खास तौर पर चालू वर्ष और अगले वित्त वर्ष के दौरान 15,000 किलोमीटर सड़क निर्माण के लिए किया जाएगा। यह शुल्क वृद्धि बृहस्पतिवार आधी रात से लागू हो गई है। दो महीने के भीतर पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क में तीन बार बढ़ोतरी से साफ पता चला है कि राजकोषीय घाटे को काबू में रखना सरकार के लिए कितना चुनौतीपूर्ण हो गया है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि पहले नौ महीने में ही इस घाटे की राशि पूरे वित्त वर्ष के लगभग बराबर पहुंच चुकी है। यही वजह है कि एक दिन पहले सरकार ने ऑटोमोबाइल उद्योग और घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री को दी गई उत्पाद शुल्क राहत भी वापस ले ली है।
         बहरहाल, सरकार का यह फैसला आम जनता पर अतिरिक्त बोझ तो नहीं डालेगा, क्योंकि तेल कंपनियों ने इसे पेट्रोल और डीजल की मौजूदा कीमत में ही समायोजित करने का फैसला किया है। इसका दूसरा पहलू यह है कि सस्ते कच्चे तेल की वजह से पेट्रोल-डीजल कीमतों में दो रुपये की संभावित कटौती अब नहीं होगी। उत्पाद शुल्क में वृद्धि से ही तेल कंपनियों ने इस बार होने वाली कीमत कटौती का फायदा ग्राहकों को नहीं दिया है।पिछले दो महीने के भीतर तीसरी बार शुल्क में वृद्धि की गई है। सरकार की तरफ से कहा गया है कि ढांचागत विकास के लिए शुल्क में बढ़ोतरी की गई है, मगर हकीकत यह है कि इस शुल्क वृद्धि से जनता को पेट्रोल-डीजल कीमत में राहत नहीं मिल पाई है।
       पेट्रोल डीजल  के अलावा भारत सरकार ने रेल किराया में वृद्धि की है इसके अलावा पहल योजना के माघ्यम से भी जनता पर अतिरिक्त बोझ डाला है।  नरेंद्र मोदी ने सत्ता सँभालते ही भारतीय अर्थव्यस्था का हवाला देते हुए कठोर निर्णय लेने की घोसणा की है जिससे भारत का खजाना भरा जा सके। ताकि भारत में महगाई को काम किया जा सके । क्योकि सरकार के पास जब तक राजस्व नहीं होगा तब तक वह देश की बिकराल समस्या बानी बेटी महगाई को कम नहीं कर पायेगी । 

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