Sunday, 27 March 2016

गांवों की बदलती दुनिया

     भारत की आत्मा गॉवो में बसती है । भारत का विकाश तब तक नहीं हो सकता जब तक भारत के गॉवो का विकाश नहीं होगा। आज भी भारत की बहुत बड़ी आबादी गॉवो में रहती है जो कृषि पर आश्रित है जो बहुत गरीब है जिस कारण भारत सरकार ने गॉवो को विकसित करने का बीड़ा उठाया है।   
           बढ़ते शहरीकरण के बावजूद अभी भी भारत को इससे जांचा-परखा जाता है कि इसके ग्रामीण क्षेत्रों में क्या कुछ घटित हो रहा है। पिछले कुछ समय में ग्रामीण भारत में हुए बदलावों को साफ तौर पर देखा-समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए ग्रामीण बाजार औद्योगिक विकास के मुख्य संचालक बन गए हैं। नि:संदेह वषरें से ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज की समस्या चिंता का विषय रही है और बिजली आपूर्ति की खराब स्थिति अभी भी बरकरार है।  बदलाव के मामले में कुछ सकारात्मक बातें भी हुई हैं। इन बदलावों ने ग्रामीण भारत में सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे के विस्तार पर बल देते हुए नए सिरे से इन क्षेत्रों में ध्यान दिए जाने की जरूरत रेखांकित की है। पिछले दो दशकों में विभिन्न राजनीतिक दलों ने इन बदलावों को गति प्रदान की है |
         देश में तकरीबन 2,40,000 ग्राम पंचायतें हैं, जिनमें करीब 30 लाख चुने हुए प्रतिनिधि हैं। इनमें 40 फीसद अनुपात महिलाओं का है। भविष्य में यह अनुपात कम से कम 50 फीसद होगा।
        मनरेगा जैसे कार्यक्रम से न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी की दरों को बढ़ाने में मदद मिली है, बल्कि ग्राम पंचायतें भी अधिक सशक्त हुई हैं, क्योंकि इनके तकरीबन आधे कार्य स्वयं उनके द्वारा क्त्रियान्वित किए जाते हैं। सामाजिक रूपांतरण महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों के विभिन्न राज्यों में तेज विस्तार का नतीजा है।
     ग्रामीण विकास के इन स्पष्ट संकेतों के बावजूद अभी भी तमाम चुनौतियां हैं। ग्राम सभा अभी भी बहुत सक्त्रिय नहीं हैं। कोष, कार्यप्रणाली और पदाधिकारियों का अभी संवैधानिक प्रावधान के मुताबिक सशक्त पंचायती ढांचे में पूर्ण हस्तांतरण शेष है।
         ग्रामीण भारत में होने वाले विविध बदलावों और चुनौतियों का विश्लेषण पेश किया जाए। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह पहल जारी रहेगी ताकि जमीनी स्तर के हालात से नीति-निर्माता भलीभांति वाकिफ रहें।

Friday, 25 March 2016

चाइनीज उत्पादों का भारतीय बाजारों में कब्ज़ा

    चाइनीज उत्पादों का  भारतीय बाजारों में कब्ज़ा
  भारतीय बाजारों में चाइनीज उत्पादों ने इस प्रकार अपना वर्चस्व स्थापित किया है कि  वर्तमान बाजार में देशी उत्पादों को कोई जगह ही नहीं है। इसका प्रमुख कारण  यह है कि चाइनीज उत्पाद सस्ते एवं देखने अच्छे होते है इस कारण  से उपभोक्ता देशी उत्पाद को न अपना कर चाइनीज उत्पाद का ज्यादा उपभोग कर रहे हैं । फलस्वरूप देशी उत्पादों का बाजार दिनो -दिन फीका होत्ता होता जा है । जिससे इन देशी उतपाद में लगी भारतीय जनता बेरोजगारी की मर को झेलने के लिए विवश हो रही है ।
     चाइनीज़ उत्पाद  की मार्केट वैल्यू अच्छी होने के कारण भारत में लगे लघु कुटीर उद्द्योग एवं घरेलू उद्दोगों की स्थिति बहुत ही ख़राब हो गई है  या यह कहा जा सकता है कि ये लगभग समाप्त होने की स्थिति में  आ गए हैं । जिससे इन लघु उद्द्दोगो में लगे व्यक्ति अपनी जीविका को शुचारु रूप से चलने के लिए अन्य काम की तलाश  में भटकने को मजबूर हो गए हैं । ऐसे में भारत सरकार एवं प्रदेश सरकारों ने कौसल विकास  माध्यम से  लोगो को प्रशिक्षण प्रदान कर स्वरोजगार करने का प्रोत्साहन दे रही है जिससे हम अपनी वस्तुओ को  नई तकनीक का प्रयोग केर निर्मित करे तथा अपनी वस्तुओ को बाजार में अस्तिव के साथ उतारे जिससे हमारे द्वारा उत्पादित सभी वस्तुए बाजार में अपनी सही छाप छोड़े जिससे प्रभावित  होकर व्यक्ति चाइनीज़ उतपाद को छोड़कर हमारे उत्पादो का उपभोग करे ताकि देशी उत्पादों का विकास किया  सके ।
     वैसे तो चाइनीज़ वस्तुए बाजार में बहुत बिकती है लेकिन इनको बेंचने वाला दुकानदार उन वस्तुओ को  खुश नहीं है क्यों कि ये वस्तुए देखने  अच्छी उपभोग  सरल एवं  होती है लेकिन इनकी गुणवत्ता में हमेशा प्रश्नचिह्न  उठता रहता है लेकिन देशी उत्पादों के साथ ऐसा देखने को नहीं मिलता है ।
     यदि अब हम चाइनीज़ उत्पादो के निर्माण पर बात करे तो यह कहा जा सकता है कि ये वस्तुए मशीनो द्वारा हाई टेक्नोलॉजी के प्रयोग से निर्मित की जाती हैं ये वस्तुए मशीनो  द्वारा निर्मित होने के कारण सुंदरता युक्त होती है जो आसानी से काम लगत में निर्मित हो जाती हैं इस कम समय एवं कम लगत में निर्मित होने के कारण सस्ती होती हैं । यही यदि  हम लघु एवं कुटीर उद्दओगो की  बात करे तो उसमे निर्मित वस्तुए हाथ से निर्मित होती है जिस कारण इनको बनाने में अधिक समय व कारीगर लगते हैं जिस कारण इनका उत्पादन मूल्य अधिक लगता है उत्पादन में अधिक खर्च हो जाने के कारण वस्तुए बाजार में महंगी होती हैं फलस्वरूप ये उत्पाद काम बिकते हैं क्योंकि कम टिकाऊ एवं आकार - प्रकार में भी देखने में अच्छे नहीं होते हैं जब की वहीं चाइनीज़  उत्पाद , देशी उत्पाद से ज्यादा टिकाऊ , आकार - प्रकार में अच्छे एवं सस्ते होने के कारण अधिक से अधिक उपभोग किये जाते हैं जिससे देशी उत्पाद लगभग खत्म होने की स्थिति में आ गए हैं ।
        चाइनीज़ उत्पादों में सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक  अधिकता  बाजारों में देखने को मिलती है  चाइनीज़ उत्पाद में आज बल्ब , ट्यूबलाइट, एमरजैंसी , घड़ी , पंखा , कूलर , टीवी आदि आ गए हैं जो देशी उत्पाद की अपेक्षा अधिक सस्ते होते हैं । जहाँ भारतीय उतपाद को खरीदने के लिए लोगो  मूल्य अदा करना  है वही चाइनीज़  खरीदने के लिए बहुत  मूल्य अदा करना पड़ता है ।  जैसे कि यदि भारतीय उत्पाद में  निर्मित बल्ब को  खरीदें तो हमें   १२० रूपए या उससे अधिक का मूल्य अदा करना पड़ता है लेकिन वहीं चाइनीज़ उत्पाद से निर्मित बल्ब हमें ६० -७० रूपए में आसानी से मिल जाते हैं यदि इनकी गुणवत्ता  बात करे तो दोनों उत्पाद   देखने को मिलती है चाइनीज़ उत्पाद खरीदने पर गारंटी नहीं दे जाती जब की देशी उत्पादों में १-२ वर्ष की गारंटी  दी जाती है चाइनीज़ उत्पाद में यह व्यवस्था नहीं है  में ये व्यवस्था न  होने के बावजूद भी बाजारों में अपना स्थान प्राप्त किया है इसका प्रमुख कारण यह है कि ये उत्पाद सस्ते एवं देशी  बराबर टिकाऊ हैं जिससे इनकी मार्किट वैल्यू मजबूत हो गई है और ज्यादा बिकने लगे हैं ।

      मैं चाइनीज़ उत्पाद बेचता हूँ मेरे यहां बल्ब , ट्यूबलाइट, एमरजैंसी , घड़ी , पंखा , कूलर , टीवी आदि चाइनीज़ उत्पाद मिलते हैं । ग्राहक इन वस्तुओ  शौक से ले जाते है एवं इनका उपभोग करते हैं मध्य वर्ग तक के सभी व्यक्ति इन चिनीसे उत्पादों का उपभोग करते हैं ।
                                                                                           -   रंजीत गुप्ता ( शाहगंज चौक इलाहाबाद  )
      मेरे यहाँ मेड इन चाइना एवं मेड इन इंडिया दोनों प्रकार के मोबाइल बेचे जाते है जिनमे  ज्यादातर चाइनीज़ मोबाइल बिकते हैं मेड इन इंडिया मोबाइल्स काम बिकते हैं मोबाइल्स पार्ट्स में भी ज्यादातर  चाइनीज़ उत्पाद ही लोगो के द्वारा  किये जाते हैं क्योकि ये उत्पाद सस्ते होते हैं ।
                                                                                               - विशाल पटेल ( कटरा इलाहाबाद  )

      

Tuesday, 22 March 2016

भिन्नता में एकता की ऐतिहासिकता

                                         भिन्नता में एकता की ऐतिहासिकता
 भारतीय सांस्कृतिक परंपरा अद्वितीय है।  धर्म, कर्म और जाति सामाजिक स्तरीकरण के सोपानीय रूप में भारतीय संस्कृति की मुख्य धारणायें  है।  इन तत्वों के सम्पूरण के कारण भारतीय समाज में संतुलन स्थायित्व दृढ़ बने।  यही कारण  कि भारतीय संस्कृति में कोई मुख्य व्यवधान उत्पन्न नहीं हुए।  यह कहा जाता है कि परिवर्तन सांस्कृतिक व्यवस्था के अंतर्गत हुआ है न कि सांस्कृतिक व्यवस्था का।  दूसरे सब्दो में कह सकते है कि कुछ संसाधनों को छोड़कर मूल रूप में सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य तथा मानक आज भी बने हुए हैं।  धर्म , कर्म और जाति  जुड़े हुए मूल्य सामाजिक और सांस्कृतिक क्रियाओं का मार्गदर्शन करते हैं।  इसलिए कहा जाता है कि परिवर्तन व्यवस्था में हुआ है न कि व्यवस्था  का।
     भारतीय समाज की अद्वितीयता का अर्थ  केवल उसकी गूढ़ प्रकृति से ही नहीं है इसका सही अर्थ समझने के लिए इसकी ऐतिहासिकता और सन्दर्भता  का गहरा अध्ययन करने की आवस्यकता है।  यहां आर्य और द्रविड़ एक साथ रहे।  हिन्दू और मुसलमान सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रो में एक दूसरे के समीप रहे हैं। तदुपरांत ईसाई भी इन दोनों के संपर्क में रहे।  आज हिन्दू , मुसलमान , सिख , ईसाई और अन्य धर्मों  के लोग सरकार शासनतन्त्र और सार्वजनिक जीवन के अन्य क्षेत्रों में एक साथ सहभागी हैं।  इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत में अत्यधिक विभिन्नता में भी निरन्तर एकता पाई जाती है प्रत्येक जाति के अलग - अलग धार्मिक कृत्य , संस्कार , नियम और रीति - रिवाज हैं।  भिन्नता की अनुभूति हम भाषायी , धार्मिक और जटिया बविभेदों द्वारा कर सकते हैं। हर क्षेत्र के लोगों के तौर - तरीके अलग -अलग पाए जाते हैं।  यहां तक की गावं में विभिन्न जाती और धार्मिक प्रवृति के मानने वाले हैं  भारतीय परंपरा अपने में अलग ही विभिन्नता  एकता बनाए हुए सांस्कृतिक , धार्मिक और प्रशासनिक कुशाग्रता का सामंजस्य कायम किये हुए है। 

Ashwani Patel
Mass Communication and Journalism

Sunday, 20 March 2016

भला कर सकता है ई - रिक्शा

 भला कर सकता है ई - रिक्शा 
                                                      

      निरन्तर बढ़ते प्रदूषण से हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ता है।  ई - रिक्शा के आने  से कुछ उम्मीद जगी है की  प्रयोग कुछ हद तक पर्यावरण प्रदूषित होने  बचाएगा।  धुंआ और ध्वनि से होने वाले प्रदूषण  निजात मिलेगी।  टेम्पो , कार , जीप , बस एवं मोटरसाइकिल से निकलने वाला धुंआ कितना जहरीला है इसका अनुमान लोगो को अपनी नाक पर रूमाल रखे देख सहज ही लगाया जा सकता है।  जो स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक है।  जब डीजल व पट्रोल जलता है तो उससे कार्बन डाई आक्साइड के रूप में जहरीली गैस निकलती है।  जब हम ऐसे प्रदूषित वातावरण में सांस लेते हैं तो जहरीले तत्व हमारे फेफड़ों में पहुंचकर जमा होते रहते हैं।   जिससे सांस फूलने , खांसी , दमा जैसे अनेक रोग हो जाते हैं।  ई - रिक्शा का प्रयोग शहरों में तो हो रहा है लेकिन अभी तक गांव में नहीं चल रहे हैं।  ऐसे में सरकार को वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए ई - रिक्शा को बढ़ावा देना  हो  जाता है। 

Ashwani Patel

Thursday, 17 March 2016

सरकार के खोखले वादे

    उत्तर - प्रदेश के बुन्देलखण्ड में किसानों के लिए प्रदेश और केंद्र सरकार के वेड विफल होते दिखाई दे रहे है।  आए - दिन किसी न किसी किसान की आत्महत्या की घटनाएं प्रसारित होती रहती हैं।  सरकार ने किसानों के लिए सूखा राहत धनराशि तो दे दी लेकिन वह किसानो तक पहुंचने में नाकाम रही है।  क्योकि उस धनराशि को सरकारी आफिसर्स डकार गए है।  जिसकी खबर लेने वाला कोई नहीं है।  परिणामस्वरूप महगाई ,  सूखा और ओलावृष्टि  मर झेलते हुए किसानों को दो वक्त की रोटी के लिए भी  सोचना पड़ रहा है।  ऐसी परिस्थितियों में आखिर किसान वर्ग के लोग कैसे जीवन - यापन करें , अब तो उनके पास ईश्वर की कृपा के अलावा कोई दूसरा सहारा नहीं रह गया है।  यदि इस वर्ष बारिश होती है तो उनकी स्थिति में सुधर की सम्भावना है नहीं तो फिर वाही मायूसी  देखने को  सकते हैं।  सत्ते  रहने के लिए वर्तमान सरकार बुनियादी वादे पर वादे  करती चली जा रही है लेकिन उन पर अमल बहुत ही  कम  होता है।  ऐसे में ये  बेबस किसान वर्तमान की बुन्देलखण्ड की समस्याओं  बीच अपना जीवन संघर्ष में जीने को मजबूर हैं।  ऐसी परिस्थितियों में न  सरकार का सपोर्ट है  और न ही समाज का।  

Tuesday, 15 March 2016

भारतीय संस्कृति में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव

                                  


भारतीय संस्कृति में  पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
           पाश्चात्य संस्कृति ने भारतीय परंपरा को पूरी तरह प्रभावित किया है।  जिससे पुरानी परंपरा अब  बहुत  कम ही मिलती है।  पश्चिम के देशो की परंपरा , वेश - भूषा , खान - पान , रहन - सहन , रीति - रिवाज को भारतीय युवाओ को अपनी तरफ आकर्षित करती है  और   वे इसे बड़ी मात्रा में अपना भी रहे हैं।  इसका बहुत बड़ा कारण विकास की  तर्ज पर अपने आप को विश्व में एक नई पहचान बनाना है।जिसका प्रभाव सुबह से लेकर दिन की होने वाली विभिन्न क्रियाकलापों  में  देखने को मिलता है।  
         इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी भाषा विज्ञानं की प्रोफेसर डॉ मीरा दीक्षित का कहना है की हमारा समाज पश्चिम के देशो से इतना अधिक प्रभावित हो चुका है कि भारत की विश्व गुरु की गरिमा ओझल होती नजर  रही है।  जिसका बहुत बड़ा कारण पश्चिम के देशो  से आई सरल एवं आसान परम्परा जो बिना किसी रोक - टोक  के उसे प्रति क्रिया करने के लिए छूट देती है।  वहीँ इसके जस्ट विपरीत हैं भारतीय  परम्पराएं क्योकि इनमे किसी भी काम को करने के लिए कुछ हद तक सीमायें निर्धारित होती हैं इसी का प्रभाव युवा को अपनी तरफ आकर्षित कर  रहा है।  इस प्रकार से भारत की परम्पराएं  तरह से शहरो में तो ख़त्म हो गई है लेकिन इसके बावजूद गांव में भी अब पश्चिमीकरण अपना असर छोड़ रहा है क्योंकि यदि विकास  की डगर में ग्रामीणों को दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है तो उन्हें भी पुराने रीति - रिवाज को पीछे छोड़कर वर्तमान समयं पर चल रही एक्टिविटी के आधार पर चलना पड़ेगा तभी वे विकास करने में   सक्षम हो सकते हैं।  

                                                                                        अश्वनी पटेल 
                                                                      जर्नलिज्म एंड मास  कम्युनिकेशन