भिन्नता में एकता की ऐतिहासिकता |
भारतीय सांस्कृतिक परंपरा अद्वितीय है। धर्म, कर्म और जाति सामाजिक स्तरीकरण के सोपानीय रूप में भारतीय संस्कृति की मुख्य धारणायें है। इन तत्वों के सम्पूरण के कारण भारतीय समाज में संतुलन स्थायित्व दृढ़ बने। यही कारण कि भारतीय संस्कृति में कोई मुख्य व्यवधान उत्पन्न नहीं हुए। यह कहा जाता है कि परिवर्तन सांस्कृतिक व्यवस्था के अंतर्गत हुआ है न कि सांस्कृतिक व्यवस्था का। दूसरे सब्दो में कह सकते है कि कुछ संसाधनों को छोड़कर मूल रूप में सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य तथा मानक आज भी बने हुए हैं। धर्म , कर्म और जाति जुड़े हुए मूल्य सामाजिक और सांस्कृतिक क्रियाओं का मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि परिवर्तन व्यवस्था में हुआ है न कि व्यवस्था का।
भारतीय समाज की अद्वितीयता का अर्थ केवल उसकी गूढ़ प्रकृति से ही नहीं है इसका सही अर्थ समझने के लिए इसकी ऐतिहासिकता और सन्दर्भता का गहरा अध्ययन करने की आवस्यकता है। यहां आर्य और द्रविड़ एक साथ रहे। हिन्दू और मुसलमान सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रो में एक दूसरे के समीप रहे हैं। तदुपरांत ईसाई भी इन दोनों के संपर्क में रहे। आज हिन्दू , मुसलमान , सिख , ईसाई और अन्य धर्मों के लोग सरकार शासनतन्त्र और सार्वजनिक जीवन के अन्य क्षेत्रों में एक साथ सहभागी हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत में अत्यधिक विभिन्नता में भी निरन्तर एकता पाई जाती है प्रत्येक जाति के अलग - अलग धार्मिक कृत्य , संस्कार , नियम और रीति - रिवाज हैं। भिन्नता की अनुभूति हम भाषायी , धार्मिक और जटिया बविभेदों द्वारा कर सकते हैं। हर क्षेत्र के लोगों के तौर - तरीके अलग -अलग पाए जाते हैं। यहां तक की गावं में विभिन्न जाती और धार्मिक प्रवृति के मानने वाले हैं भारतीय परंपरा अपने में अलग ही विभिन्नता एकता बनाए हुए सांस्कृतिक , धार्मिक और प्रशासनिक कुशाग्रता का सामंजस्य कायम किये हुए है।
Ashwani Patel
Mass Communication and Journalism
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