Monday, 18 April 2016

रफ़्तार ने उजाड़ दी जिन्दगी..

     
    भारत में पिछले डेढ़ दशक में देशभर की सड़कों पर क्षमता से अधिक वाहन हो गए  हैं। सुप्रीम कोर्ट में दर्ज की गई एक याचिका में दिए आंकड़ों से पता चलता है कि 2010 में भारत में करीब 46.89 लाख किलोमीटर सड़कें और 11.49 करोड़ वाहन थे। जिसमे  4.97 लाख सड़क हादसे हुए। इन हादसों में ज्यादातर मरने वाले लोगों में 40 फीसदी, 26 से 45 वर्ष  आयुवर्ग के होते हैं। यही वह महत्वपूर्ण समय होता है, जब इन पर परिवार के उत्तरदायित्व के निर्वहन का सबसे ज्यादा दबाव होता है। ऐसे में दुर्घटना में प्राण गंवा चुके व्यक्ति के परिजनों पर सामाजिक, आर्थिक और आवासीय समस्याओं का संकट एक साथ टूट पड़ता है। इन हादसों में 19 से 25 साल के इतने युवा मारे जाते हैं, जितने लोग कैंसर और मलेरिया से भी नहीं मरते। ये हादसे मानवजन्य विसंगतियों को भी बढ़ावा दे रहे हैं। आबादी में पीढ़ी व आयुवर्ग के अनुसार जो अंतर होना चाहिए,उसका संतुलन भी गड़बड़ा रहा है। यदि सड़क पर गति को नियंत्रित नहीं किया गया तो 2020 तक भारत में 700000 और दुनिया में प्रति वर्ष 84 लाख से भी ज्यादा मौतें सड़क हादसों में होगी। नतीजतन संबंधित देशों को 235 अरब रुपए की आर्थिक क्षति झेलनी होगी। ऐसे में शायद आबादी नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन की जरुरत ही नहीं रह जाएगी ?





           हादसों पर नियंत्रण के लिए केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकारी ने मोटर वाहन अधिनियम में बदलाव के संकेत दिए हैं। तीन बार यातायात संकेत का उल्लंघन के बाद चालक का अनुज्ञा-पत्र (लायसेंस) छह माह के लिए निलंबित कर दिया जाएगा। इसके बाद संकेतक को ठेंगा दिखाया जाता है तो लायसेंस हमेशा के लिए रद्द कर दिया जाएगा। शराब पीकर वाहन चलाने और गाड़ी चलाते में मोबाइल पर बात करने वाले चालकों पर भी सख्त कार्रवाई की दरकार है। यहां सवाल उठता है कि ऐसी कार्रवाईयों की हकीकत कैसे जानी जाएगी ? हमारा यातायात सिस्टम  एक तो भ्रष्ट है, दूसरे कर्त्तव्य स्थल से ज्यादातर समय बेफिक्र  रहता है, और  कई बार यातायात कर्मियों को भी कर्त्तव्य पालन के दौरान नशे की हालत में पकड़ा गया है। इसलिए यातायात पुलिस को सुधारे बिना सख्त कानून बन भी जाएं, तो उनसे होगा क्या ? लिहाजा कानूनी सख्ती से कहीं ज्यादा यातायात पुलिस को सुधारने की जरुरत है। जो सख्ती से यातायात नियमों का पालन करें  लोगों से करवाए ।  तभी हादसों में होने वाली मौतों से खुद को और अपने युवा समाज  रक्षा क्र सकते हैं ।


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