आतंकवाद से जुड़ी ऐसी कई घटना है , जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है जैसे -
सिडनी के एक कैफे में बंदूक की नोक पर अनेक लोगों को बंधक बनाए जाने की
घटना उस आतंकवाद की गंभीरता को नए सिरे से रेखांकित कर रही थी , जिससे आज पूरी दुनिया को जूझना पड़ रहा है। जिसकी जांच के बाद ही पता चला
कि इस घटना के लिए कौन जिम्मेदार है और उसका मकसद क्या है, लेकिन इस मामले
ने दुनिया को इस खतरे से आगाह कराया है कि कट्टरपंथी सोच के कितने गंभीर
दुष्परिणाम हो सकते हैं।
आतंकवाद की समस्या अब बहुत गंभीर हो चुकी है।
पिछले दो-तीन सालों में यह समस्या इस हद तक बढ़ी है कि कोई भी देश खुद को
सुरक्षित नहीं मान सकता। इस्लामिक कट्टरता को बढ़ावा देने वाले तत्व पूरी
दुनिया में फैल चुके हैं और इनसे सामान्य तौर-तरीकों से मुकाबला नहीं किया
जा सकता। जब तक कट्टरता और उससे उपजे आतंकवाद के खिलाफ दो स्तरों पर लड़ाई
नहीं लड़ी जाएगी तब तक इसका फैलाव होता ही रहेगा। इस आतंकवाद से सैन्य और
सरकारी स्तर पर तो लड़ना ही होगा, बल्कि विचारधारा के स्तर पर भी इसके खिलाफ
ठोस लड़ाई छेड़नी होगी। जब तक कट्टरता की विचारधारा नहीं पराजित होगी तब तक
आतंकवाद के खिलाफ युद्ध जीता नहीं जा सकता। यह विचारधारा ही है जो नए-नए
आतंकी तैयार करती है।
हैरानी की बात यह है कि ऐसे तमाम
देशों को उस अमेरिका का समर्थन मिल रहा है जो आतंकवाद के खिलाफ वैश्रि्वक
जंग का नेतृत्व कर रहा है। यह कैसा विरोधाभास है। हर कोई जानता है कि ये
देश और उनकी सरकारें आतंकी संगठनों को हथियार और पैसा उपलब्ध कराती हैं,
लेकिन वे किसी भी सजा से बची हुई हैं। सजा तो दूर की बात है, पाकिस्तानी
सेना तो अमेरिका से पुरस्कार पा रही है।
एशिया के कई देश पहले ही आर्थिक संकट
के दौर से गुजर रहा है और यदि आतंक की इस घटना के बाद वहां सामाजिक तनाव
बढ़ता है तो न केवल इस क्षेत्र की समस्याएं बढ़ेंगी, बल्कि उसका असर पूरी
दुनिया में पड़ेगा। अमेरिका में 9/11 की घटना के बाद आतंकवाद वैसे ही पूरे
विश्व के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। चूंकि इस आतंकवाद के केंद्र में
इस्लाम की कट्टर विचारधारा को देखा जा रहा है इसलिए भारत समेत वे सभी देश
सामाजिक तनाव के दौर से गुजर रहे हैं जहां अच्छी-खासी मुस्लिम आबादी है और
जो धार्मिक सहनशीलता के लिए जाने जाते हैं।
भारत में
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन यह भी सही है कि यहां आलोचना को
स्वीकार करने का साहस कम ही प्रदर्शित किया जाता है। धार्मिक मामलों में
मामूली टीका-टिप्पणी बड़े टकराव और यहां तक कि दंगों का कारण बन जाती हैं।
ऐसे दंगों में न जाने कितने लोग मारे जा चुके हैं। कई बार तो केवल सामाजिक
सुधार के लिए की जाने वाली टिप्पणी को धार्मिक रंग देकर उर्ग्र विरोध शुरू
कर दिया जाता है। यह ठीक नहीं, क्योंकि किसी टिप्पणी अथवा कार्य के खिलाफ
लोकतांत्रिक ढंग से अपनी बात कहने, विरोध दर्ज कराने और न्याय मांगने का
अधिकार सबको हासिल है।
अंतत: आजाद भारत के जनक के रूप में गांधी जी ने सहिष्णुता की जो सीख दी उस पर सारे विश्व को ध्यान देने की आवश्यकता है।
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