Saturday 9 April 2016

पानी पुनरुत्थान पहल के साथ एक अनूठी शुरुआत


बुंदेलखंड की प्रचलित जल संरक्षण की परंपरागत विधियों में से मेड़, बंधी, पोखर, तालाब हैं। यहां तालाबों की क्षमता के अनुसार उन्हें सागर की संज्ञा भी दी गयी है। यहां के तालाबों की अपनी संस्कृति एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। इसके साथ ही ये तालाब लाखों परिवारों के लिए आजीविका के स्रोत भी रहे हैं।




बुंदेलखंड बीते सात वर्षों से ऋतु असंतुलन व सूखा की चपेट में है। अनवरत अवर्षा, असमय वर्षा और स्थानीय पारंपरिक जल प्रबंधन की अपनी विधियों के साथ न्याय न होने से ये सभी जलस्रोत एक-एक कर मृतप्राय हो रहे हैं, जिनके बलबूते पर इस क्षेत्र के बाशिंदों ने बड़े से बड़े अकाल का सामना किया और अपनी जीवितता बनाये रखी है।
बुंदेलखंड क्षेत्र के जनपद महोबा के रियासत रहे कस्बा चरखारी में कमोबेश डेढ़ दर्जन छोटे-बड़े तालाब है, इसमें से 7 तालाब तो ऐसे हैं, जो आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। 400 वर्षों के अनुभवों को समेटे ये तालाब वर्ष 2007 के सूखे में अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में सूखने लगे। जब छोटे-बड़े सभी जलस्रोत दम तोड़ने लगे, पशु-पक्षी, जंगली जानवर आदि सभी प्यास से मरने लगे, तब लोगों की चिंता बढ़ी और इस समस्या से निपटने हेतु लोगों ने इनको पुनर्जीवित करने की दिशा में प्रयास किया और पानी पुनरुत्थान पहल के साथ एक अनूठी शुरुआत हुई।

1 comment:

  1. भारत में आज ये समय आगया है कि 9 राज्य सूखे की चपेट में है| यदि तेजी हो रहे जलवायु परिवर्तन पर काबू न पाया गया तो आने वाले दशक में स्थिति और भी विकट हो सकती है|

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